Author: AstroGuru Mrugank | Last Updated: Tue 24 Sep 2024 3:48:43 PM
एस्ट्रोकैंप का 2025इस्लामिक कैलेंडर का यह लेख विशेष रूप से इस्लाम धर्म के लोगों के लिए तैयार किया गया है जिसके माध्यम से आपको नए साल यानी कि वर्ष 2025 में आने वाले प्रमुख इस्लामिक त्योहारों एवं अवकाशों की सही तिथियों के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी या इस्लामिक चंद्र कैलेंडर भी कहा जाता है जो कि दुनियाभर के मुसलमानों के लिए विशेष मायने रखता है। प्रत्येक मुसलमान के घर में हिजरी या इस्लामिक कैलेंडर लगा होता है जिनसे उन्हें धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्वों की जानकारी मिलती है। चंद्र चक्र पर आधारित इस कैलेंडर में समस्त धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।
To Read in English: 2025 Islamic Calendar
हिजरी कैलेंडर को इस्लामिक कैलेंडर में विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि इसके अंतर्गत इस्लाम धर्म के प्रमुख पर्वों एवं अवकाशों को जगह दी जाती है। इस्लामिक कैलेंडर में चंद्रमा के चरणों के आधार पर माह के शुरुआत और समाप्ति की जानकारी दी जाती है। यह अरबी कैलेंडर, लूनर हिजरी कैलेंडर और मुस्लिम कैलेंडर के नाम से भी जाना जाता है। हम सब यह भली-भांति जानते हैं कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक वर्ष में 12 महीने और 365 से 366 दिन आते हैं जबकि 2025 इस्लामिक कैलेंडर में 365 नहीं बल्कि 354 से 355 दिन होते हैं। बता दें कि जब पैगंबर मुहम्मद मदीना आये थे, उसी के बाद इस्लामिक कैलेंडर शुरू हुआ था इसलिए इसका श्रेय खलीफा उमर इब्न अल-खत्ताब को जाता है।
क्या आपकी कुंडली में हैं शुभ योग? जानने के लिए अभी खरीदें बृहत् कुंडली
दूसरे कैलेंडरों में खगोलीय वर्ष के अनुरूप होने के लिए प्रत्येक 100 वर्षों में लीप ईयर या महीनों को जोड़ा जाता है जबकि इस्लामिक कैलेंडर में ऐसा नहीं किया जाता है। शायद ही आप जानते होंगे कि सौर वर्ष के 100 साल की तुलना में इस्लामिक वर्ष में 11 दिन कम होते हैं। इस अंतर की वजह से कृषि, समारोहों या कार्यों का निर्धारण करने के लिए इस्लामिक कैलेंडर को उपयुक्त नहीं माना जाता है इसलिए ही अधिकतर मुस्लिम देश आवश्यक मामलों के लिए हिजरी प्रणाली के साथ-साथ ग्रेगोरियन कैलेंडर का भी इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह 2025 इस्लामिक कैलेंडर में भी 1 साल में 12 महीने होते हैं।
महीनों के नाम |
अर्थ एवं महत्व |
मुहर्रम |
इस्लामिक नव वर्ष |
सफ़र (सफ़र-उल-मुजफ्फर) |
कुरैश जनजाति के अत्याचारों से बचने के लिए मुसलमानों ने सुरक्षा और स्वतंत्रता के लिए मदीना में शरण ली थी। |
रबी-उल-अव्वल |
पवित्र पैगंबर के जन्म, हिजरत और उनके निधन का महीना। |
रबी-अथ-थानी |
साल का चौथा माह |
जुमादा-अल-उला |
शव्वाल के महीने में पैगंबर मुहम्मद (अलैहि अस-सलाम) ने सैय्यदा खदीजा से निकाह किया था। |
जुमादा-अल-अखिराह |
यह शुष्क मौसम के अंतिम माह का प्रतिनिधित्व करता है। |
रज्जब |
इस माह में पैगंबर मुहम्मद ने इसरा-मिराज की यात्रा की थी। |
शबान |
इस्लाम धर्म के लोगों के लिए शब-ए-बारात एक विशेष रात मानी जाती है और यह महीने की 15 तारीख को आती है। इसे अधिकांश लोग माफी की रात भी कहते हैं। इस दिन लोग प्रार्थना करते हैं और अपनी भूलों के लिए क्षमायाचना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब वह इस रात क्षमा मांगते हैं, तब अल्लाह उनके पापों को माफ़ कर देते हैं या यह समय आत्म शुद्ध और आत्म-चिंतन करने के लिए सबसे अनुकूल होता है। |
रमज़ान |
इस्लाम धर्म में रमज़ान का महीना सबसे पवित्र महीना माना गया जाता है क्योंकि यह पवित्र कुरान की शुरुआत का प्रतीक है। इस माह में मुसलमान अल्लाह के प्रति अपनी भक्ति एवं आस्था को प्रकट करने के लिए 30 दिनों तक रोज़ा रखते हैं। |
शव्वाल |
इस्लामिक कैलेंडर में शव्वाल माह के पहले दिन ईद-उल-फितर मनाया जाता है। |
धुल-क़ादा |
इस्लाम धर्म के लिए ज़िल क़ादा विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह महीना इस्लामिक कैलेंडर के पवित्र चार महीना में से एक होता है। इस्लाम धर्म के लोगों के लिए यह महीना बहुत ख़ास है। |
धुल-हिजजाह |
इस माह के दौरान हज यात्रा की जाती है और इस महीने के 10वें दिन ईद-उल-अधा या बकरा-ईद का पर्व मनाया जाता है। |
ग्रेगोरियन तिथि |
दिन |
त्योहार |
हिजरी तारीख |
1 जनवरी 2025 |
बुधवार |
पवित्र महीने की शुरुआत (रजब) |
1 रज्जब 1446 हिजरी |
27 जनवरी 2025 |
सोमवार |
इसरा मिराज |
27 रज्जब 1446 हिजरी |
31 जनवरी 2025 |
शुक्रवार |
शाबान की शुरुआत |
1 शाबान 1446 हिजरी |
14 फरवरी 2025 |
शुक्रवार |
आधा शाबान |
15 शाबान 1446 हिजरी |
1 मार्च 2025 |
शनिवार |
रमज़ान और रोज़े का महीना शुरू |
1 रमज़ान 1446 हिजरी |
17 मार्च 2025 |
सोमवार |
नुज़ूल-उल-कुरान |
17 रमज़ान 1446 हिजरी |
27 मार्च 2025 |
गुरुवार |
ललयात-उल-कद्र |
27 रमज़ान 1446 हिजरी |
31 मार्च 2025 |
सोमवार |
शव्वाल की शुरुआतl |
1 शव्वाल 1446 हिजरी |
31 मार्च 2025 |
सोमवार |
ईद-उल-फ़ितर |
1 शव्वाल 1446 AH |
29 अप्रैल 2025 |
मंगलवार |
ज़िल-क़ादा की शुरुआत |
1 धुल-क़ादा 1446 हिजरी |
28 मई 2025 |
बुधवार |
ज़िलहिज्जा की शुरुआत |
1 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी |
5 जून 2025 |
गुरुवार |
अराफात में वक्फ (हज) |
9 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी |
6 जून 2025 |
शुक्रवार |
ईद-उल-अज़हा |
10 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी |
7 जून 2025 |
शनिवार |
तश्रीक़ के दिन |
11, 12, 13 ज़िलहिज्जा 1446 हिजरी |
26 जून 2025 |
गुरुवार |
मुहर्रम (इस्लामिक नव वर्ष) की शुरुआत |
1 मुहर्रम 1447 हिजरी |
5 जुलाई 2025 |
शनिवार |
आशूरा व्रत |
10 मुहर्रम 1447 हिजरी |
26 जुलाई 2025 |
शनिवार |
सफर की शुरुआत |
1 सफ़र 1447 हिजरी |
25 अगस्त 2025 |
सोमवार |
रबी-उल-अव्वल की शुरुआत |
1 रबी-उल-अव्वल 1447 हिजरी |
15 सितंबर 2025 |
शुक्रवार |
पैगंबर (मावलिद) का जन्मदिन |
12 रबी-उल-अव्वल 1447 हिजरी |
23 सितंबर 2025 |
मंगलवार |
रबी-उल-थानी की शुरुआत |
1 रबी-उल-थानी 1447 हिजरी |
23 अक्टूबर 2025 |
गुरुवार |
जमादा-उल-उला की शुरुआत |
1 जमादा-उल-उला |
22 नवंबर 2025 |
शनिवार |
जमादा-उल-अखिरा की शुरुआत |
1 जुमादा-अल-अखिरा 1447 हिजरी |
संतान के करियर की हो रही है टेंशन! अभी आर्डर करें कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट
इस्लाम धर्म के प्रमुख पर्वों एवं तिथियों के निर्धारण में चंद्र चरण महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। चंद्रमा के चक्र पर आधारित इस्लामिक कैलेंडर में हर महीने की शुरुआत चंद्रमा के दर्शन के साथ होती है। भारत सहित दुनियाभर में मुस्लिम समुदाय के लोगों को चंद्रमा की कलाओं के माध्यम से आध्यात्मिक और व्यावहारिक सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त होती हैं। अमावस्या के अगले दिन से इस्लामिक महीने का आरंभ होता है जिसका इंतज़ार लोग बहुत बेसब्री से करते हैं क्योंकि यह दिन धार्मिक अवसरों की शुरुआत का भी प्रतिनिधित्व करता है। 2025 इस्लामिक कैलेंडर के धू अल-हिज्जा माह में होने वाली हज यात्रा और अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजनों का निर्धारण भी चंद्रमा के चरणों को देखकर ही किया जाता है।
अगर हम 2025 इस्लामिक कैलेंडर के बारे में बात करें, तो आज से तक़रीबन 637 ईसा पूर्व दूसरे खलीफा उमर ने कुछ विशेष उपलब्धियों को हासिल किया था और 2025 इस्लामिक कैलेंडर का निर्माण भी उन उपलब्धियों में शामिल है। ऐसे में, अब आपके मन में विचार आ रहा होगा कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लिए विशेष कैलेंडर बनाने के बजाय एक आम कैलेंडर क्यों नहीं बनाया? बता दें कि 622 ईसा पूर्व में पैगंबर मुहम्मद को एक घटना की वजह से मक्का से मदीना आना पड़ा था और उनके द्वारा उठाये गए इस कदम को इस्लाम धर्म की हिफाज़त करने के लिए एक बलिदान के रूप में देखा जाता है इसलिए जब पैगंबर मक्का से मदीना आये थे, तब उमर ने कहा था कि “यहां से हमारे कैलेंडर की शुरुआत होनी चाहिए।” उन्होंने आगे कहा कि “पैगंबर के स्थानांतरण ने एक नई शुरुआत की है और झूठ को सच से शुद्ध कर दिया है।”
इस प्रकार, हिजरी वर्ष मुस्लिम धर्म के लोगों को उनके धर्म की रक्षा हेतु पैगंबर द्वारा दिए गए सर्वोच्च बलिदान की याद दिलाता है जिन्होंने इस्लाम धर्म के लिए मार्ग का निर्माण करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, हिजरी कैलेंडर का इस्तेमाल करना एक टाइम मशीन में देखने की तरह है क्योंकि इसके माध्यम से हम अपने अतीत को देख सकते हैं, उससे नए अनुभव ले सकते हैं, कुछ नया सीख सकते हैं और अल्लाह के नज़दीक रह सकते हैं। 2025 इस्लामिक कैलेंडर न सिर्फ आपको मुस्लिम संप्रदाय के प्रमुख त्योहारों की सटीक तारीखों के बारे में अवगत करवाता है, बल्कि यह हमें हमारे धर्म से भी जोड़ता है। 2025 इस्लामिक कैलेंडर को आप अगली बार देखेंगे, तो आप यह एहसास कर सकेंगे कि आप इस्लाम धर्म के इतिहास और बलिदान से रूबरू हो रहे हैं।
करियर की हो रही है टेंशन! अभी ऑर्डर करें कॉग्निएस्ट्रो रिपोर्ट
इस्लाम धर्म के सप्ताह में भी सामान्य सप्ताह की तरह सात दिन होते हैं, लेकिन इस्लामिक सप्ताह बहुत दिलचस्प होता है। इस्लामिक सप्ताह में एक दिन उस समय शुरू होता है, जब शाम के समय पूरा आसमान रंगीन हो जाता है। सामान्य शब्दों में कहें, तो मुस्लिम दिन का आरंभ सूरज के ढलने और तारों के आसमान में दिखाई देने पर होता है, परन्तु इन सात दिनों में शुक्रवार का दिन विशेष मायने रखता है। दुनियाभर के मुसलमान शुक्रवार के दिन मस्जिद जाकर नमाज़ करते हैं और शुक्रवार से ही मुस्लिम समुदाय के लोगों के सप्ताह की शुरुआत होती है। इस दिन मुस्लिम लोग जुम्मे की नमाज के लिए एक स्थान पर एकत्रित होते हैं। कुछ मुस्लिम देशों में सप्ताह का अंत शुक्रवार और शनिवार या गुरुवार और शुक्रवार के दिन होता है। ऐसे में, इस्लाम में सप्ताह के सात दिनों के नाम इस प्रकार हैं:
रमज़ान का महीना बहुत पवित्र होता है और इस माह में मुसलमान जीवन में नैतिक सिद्धांतों का पालन करने और आत्मा को शुद्ध करने के लिए सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कठिन रोजा रखते हैं। प्रत्येक मुस्लिम के लिए रोजा खुद को अनुशासन में रखने का एक शक्तिशाली अवसर होता है और इसमें इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ कुरान विशेष भूमिका अदा करता है। मुस्लिम धर्म के अनुयायियों का मत है कि रमज़ान के महीने में ही पैगंबर ने आत्मा की शुद्धि और मुहम्मद ने कुरान का उद्घाटन किया था। इस महीने में कुरान नाज़िल हुआ था जो हमारे गेब्रियल फ़रिश्ते थे वह मोहम्मद नबी के पास अल्लाह का पैगाम लेकर आते थे और इस प्रकार, रमज़ान के महीने में कुरान पूरी तरह से नाज़िल हो गया था।
दुनिया भर के मुसलमान रमज़ान के पवित्र महीने में ईमानदारी के साथ अपना जीवन दृढ़ता के साथ जीते हैं। इस दौरान वह उन लोगों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट करते हैं जिनके जीवन में मूलभूत सुविधाओं का अभाव होता है। साथ ही, वह दिन में सभी तरह के भोग-विलास से दूर रहते हुए अल्लाह के साथ अपने रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। 2025 इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, इस्लाम धर्म के वर्ष में रमज़ान नौवां महीना होता है जो मुस्लिमों को अध्यात्म से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसके अलावा, यह लोगों को मानवता, दया और दयालुता की याद दिलाता है। हर मुसलमान रोज़ा रखकर और इस्लामिक सिद्धांतों का पालन करके अपने धर्म के प्रति समर्पण प्रदर्शित करता है।
2025 इस्लामिक कैलेंडर में शब-ए-बारात या क्षमा याचना की रात को विशेष माना जाता है। शब्बान माह की 15 तारीख को आती है और इस रात सभी मुसलमान अल्लाह से अपनी गलतियों एवं जान-अनजाने में हुई भूलों की माफ़ी मांगते हैं। साथ ही, इस अवसर पर परिवार के मृत या रोग से ग्रसित परिवारजनों के लिए भी प्रार्थना करते हैं। कहते हैं कि शब-ए-बारात की रात्रि पर मुस्लिम लोग अपने पूर्वजों की जगह क्षमा मांगकर नरक की यातनाओं से बच सकते हैं।
मान्यता है कि शब-ए-बारात की रात अल्लाह सभी का भविष्य लिखते हैं इसलिए यह रात्रि बहुत ख़ास होती है। इस त्योहार को सांस्कृतिक परंपराओं के आधार पर मुस्लिम समाज के लोग अलग-अलग तरीके से मनाते हैं। शब-ए-बारात को विभिन्न समुदायों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे कि बारात की रात, चिराग-ए-बारात, निस्फु सयाबन और बेरात कंडिली आदि।
मुस्लिम संप्रदाय के लोग लायलत अल-कादर को बहुत उत्साह एवं धूमधाम के साथ मनाते हैं जो कि उस रात का प्रतीक माना गया है जब पहली बार पैगंबर मुहम्मद को पवित्र धार्मिक ग्रंथ कुरान की आयतें सुनाई गई थी। लायलत अल-कादर के दिन मुस्लिम लोग उस समय के प्रति आदर-सम्मान प्रकट करते हैं जब पहली बार पैगंबर मुहम्मद को कुरान सुनाई गई थी। इस्लाम धर्म के इतिहास में इस घटना को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह आस्था के जन्म और दिव्य शिक्षा के प्रसार का प्रतिनिधित्व करती है।
सरल शब्दों में कहें, तो लायलत अल-कादर आशीर्वाद प्राप्त करने, क्षमा करने और अल्लाह की कृपा पाने का समय होता है। इस दिन मुस्लिम अपनी इच्छाओं को पूरा करने के साथ-साथ अल्लाह के करीब जाने की दुआ मांगते हैं। लायलत अल-कादर के माध्यम से मुसलमान उस पावन क्षण के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं जिसने कुरान में दी गई शिक्षा के प्रचार-प्रसार को जारी रखा।
पाएं अपनी कुंडली आधारित सटीक शनि रिपोर्ट
2025 इस्लामिक कैलेंडर के पवित्र महीने रमज़ान के अंतिम शुक्रवार को जमात-उल-विदा कहा जाता है। यह मोक्ष और पुरस्कार पाने का अवसर माना जाता है इसलिए इस दिन मुस्लिम धर्म के लोग अनेक तरह के धार्मिक कार्य जैसे दान-पुण्य आदि करते हैं। साथ ही, गरीबों एवं जरूरतमंदों की सामर्थ्य के अनुसार सहायता करते हैं। इस अवसर पर मस्जिद में एकत्रित होकर नमाज़ पढ़ने से एकता को बल मिलता है।
इस्लाम धर्म में आशूरा एक शोकपूर्ण दिन है क्योंकि इस दिन महान शख्सियत को याद किया जाता है। यह पर्व साल में एक बार आता है जो कि इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने अर्थात मुहर्रम के दसवें दिन पर मनाया जाता है। इस अवसर पर शिया मुस्लिम दुख और शोक व्यक्त करते हैं क्योंकि यह हुसैन इब्न अली की भयावह मौत की स्मृति में मनाया जाता है। बता दें कि वह इस्लाम धर्म की एक ऐसी महान शख्सियत थे जिनको 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में मार दिया गया था इसलिए इस दिन शिया मुसलमान शोक प्रकट करते हैं और हुसैन इब्न अली को याद करते हुए उनके और उनके परिवार के प्रति सम्मान व्यक्त करते हैं।
ईद-उल-मिलाद इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है क्योंकि यह दिन पैगंबर मुहम्मद के जन्मदिन और अंतिम विदाई के तौर पर जाना जाता है। सुन्नी मुसलमान जहां रबी-उल-अव्वाल के 12वें दिन ईद-उल-मिलाद को मनाते हैं, तो वहीं शिया मुसलमान द्वारा इस माह के 17वें दिन रबी-उल-अव्वाल को मनाया जाता हैं। इस दिन दुनियाभर के मुसलमान पैगंबर मुहम्मद के जीवन और उनके द्वारा दी गई शिक्षा को याद करते हैं। साथ ही, ईद-उल-मिलाद पर दुआ और नात करने का भी रिवाज़ है जिससे आध्यात्मिक माहौल का निर्माण होता है।
ईद-उल-अधा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है जो कि त्याग का उत्सव होता है। यह त्योहार 2025 इस्लामिक कैलेंडर के दसवें महीने के दसवें दिन आता है जो कि हज यात्रा के बाद आता है और चंद्रमा के आसमान में नज़र आने के बाद इसकी पुष्टि की जाती है। चंद्र कैलेंडर की मानें, तो ईद-उल-अधा हज यात्रा के पूरे होने पर आता है। इस्लाम धर्म के कुछ नीति-नियम होते हैं जिन्हें पूरा करने वाले मुसलमान ही मक्का की यात्रा कर सकते हैं तथा यह ईद-उल-अधा की समाप्ति पर होती है।
सभी ज्योतिषीय समाधानों के लिए क्लिक करें: ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख जरूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ जरूर साझा करें। धन्यवाद!
1. 2025 इस्लामिक कैलेंडर किस पर आधारित है?
इस्लामिक कैलेंडर मुख्य रूप से चंद्र आधारित होता है।
2. एक इस्लामिक वर्ष में कितने माह होते हैं।
2025 इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, इस्लाम धर्म के एक महीने में कुल 12 महीने आते हैं।
3. साल 2025 में रमज़ान का महीना कब से शुरू है?
इस वर्ष 1 मार्च 2025, शनिवार से रमज़ान का पवित्र महीना शुरू है।
Get your personalised horoscope based on your sign.